Sunday, January 06, 2008

प्रेम का रंग

प्रेम का रंग
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जब से देखा है

वो चेहरा,

चित्त हुआ उद्देलित,

बानी पर रहा न

नियन्त्रण,

लेखनी भी हुयी

बेकाबू,

अरे ये क्या हुआ

आपको रमेश बाबू ?


पता चला कि

रमेश बाबू की

अभी अभी हुयी है

सगाई,

और इन्होने उस

रामणी से आँख

है मिलाई


रमणी की वक्र

द्रिष्टि ने,

अपने रमेश बाबू कि

नींद है उडाई


अब बावरे से हुये

घूम रहे हैं,

खुशियों से देखो

कैसे झूम रहे हैं


आफिस के सहयोगी

कानाफूसी करने लगे हैं,

रमेश बाबू आजकल

काम जो करने लगे हैं


दोस्तों-मित्रों ने भी

बनाया उनका मजाक है,

बोले दीवानों का

होता यही हाल है


ये सज्जन जो-

बाल काढना अपना

अपमान समझते थे,

कपडों को साफ करना,

एक लज्जाजनक कृत,

आजकल बालों में

तेल डालकर

चकाचक कपडे पहने

इत्रमान हो बतियाते हैं,

और सबको सफाई कि

महत्ता समझाते हैं


कवि लोग भी हुये

हैरान-परेशान,

देख रमेश बाबू

का ये हाल परिवर्तन-

बिरादरी के लोगों की

संख्या अब घटने लगी है,

इसका करने लगे वो

आत्ममंथन


मंथन के इस दौर में,

अचानक आया,

मुझे भी ये ख्याल-

सुधर सकते हैं अगर

रमेश बाबू भी तो,

क्यूँ न मिला लूँ

मैं भी उनकी ही ताल मे ताल


कुछ दिनों बाद,

कवि बिरादरी में

एक और चर्चा

गुंजायमान हो उठी,

बिरादरी का एक और

'अमित' रंग

'क़िरन' की आँच में तपकर,

छोड गया था,

कवियों का संग


ऐसा ही होता है मित्रों -

छूट जाती है सारी

पुरानी तरंग,

जब चढता है,

प्रेम का दीवाना

और मधुर रंग


अमित कुमार सिंह