Saturday, April 19, 2008

इस्त्री और सौन्दर्य

इस्त्री और सौन्दर्य
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एक दिन मैं और
श्रीमती जी ब्यूटी पार्लर गये,
देख वहा इस्त्री मशीन
जगा मन मे कौतुहल,
पूछ बैठा सौन्दर्यबाला से-


क्या आप के यहा
इस्त्री भी होती है?
सुन ये सवाल वो
मुझे घूरने लगी
और सौन्दर्य के
मेरे अल्प ज्ञान पर
मुस्कराने लगी !


क्षण भर बाद वो बोली-
लगता है आप सौन्दर्य
की विधाओं से अंजान हैं
मेरे यहाँ पहली बार
बने मेहमान हैं !


मेरी इस बेवकूफी भरी
हरकत पर श्रीमती जी
उबलने लगीं,
और अपनी बडी-बडी आखोँ
से मुझे डराने लगीं !


पढ उनकी आखोँ का
ये सदेंश मुझे
अपना हश्र नजर
आने लगा और
अब बेलन वाले प्रसाद का
भय मुझे सताने लगा !


कुछ समय बाद
देखता हूँ कि-
इस्त्री गर्म हो
श्रीमती जी के बालों
पर चलने लगी है
और अपनी तपन से
उसे सीधा करने लगी है !


आधुनिक युग के
इस अदभुत दृश्य को
देखकर मेरी आँखें
खुली की खुली रह
गयीं और सौन्दर्य के
इस भौगोलीकरण पर,
उपकरणों के इस अनूठे
उपयोग पर,
मेरी 'अमित' लेखनी
स्तब्ध रह गयी !!


अमित कुमार सिंह

Tuesday, April 15, 2008

क़ैसे करु वर्णन ?

क़ैसे करु वर्णन ?
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लेखनी हुयी परेशान
कैसे लिखूँ उनका नाम,
उनके हसीन चेहरे पर
छायी मधुर 'किरन' का
कैस करु वर्णन,
सोचते -सोचते हो गयी
लेखनी भी बेचैन,
और लो ये तो
हो गयी सुबह से शाम !


सूर्य के प्रकाश से
प्रज्जवलित मुख का
वर्णन भी न कर पाया
और चांदनी ने अपनी
आभा उन पर,
बिखेर डाला !


आज कवि के
शब्दों ने मौन
क्यों है किया धारण?
नहीं है ये
बात साधारण !



कहना तो बहुत
कुछ चाहता हूँ,
पर शब्दों का
चयन नहीं कर
पा रहा हूँ !


चंचल हैं उनके
चितवन,
कटार सी तीखीं
हैं निगाहें,
अधरों पर छायी
मधुर मुस्कान है,
गुलाबी उनके
कपोल हैं,
चेहरा उनका,
चन्द्रमा सा गोल है,
उस पर जो कातिल
तिल है,
देख उसे होता
उद्देलित मेरा
दिल है !



सोच जिसे,
पुलकित हुआ मेरा मन है,
बाहें फैलाये,
खुशियां समेटने को
बेचैन ये दिल है !


श्यामल घटाओं सी
रेशमी जुल्फें हैं,
जिन पर अरुणिमा सा
चमकता सिन्दूर है,
करता चित्त की
वासनाओं जो दूर है,
क्या गजब का
चेहरे पर उनके
छाया नूर है !


पायलों का संगीत
उनके आने की
देता आहट है,
जल प्रपात सी
स्वच्छंद उनकी
खिलखिलाहट है,
क्या ही सुन्दर उनके
चेहरे की बनावट है !


मदमस्त उनकी चाल
उस पर उनकी
मतवाली अदा,
लेती है दिलों को हर,
देख ले कोई उन्हे
अगर सिर्फ पल भर !

उनके सौन्दर्य का
यदि करने लगे ये
आशिक 'अमित' वर्णन,
तो दोस्तों-

चाहिये अम्बर भर कागज,
समुन्दर दी स्याही,
पेडों की बना लूं
गर लेखनी,

तो फिर शायद प्रस्तुत कर पाये
ये प्रेमी कवि,
उनके मोहनी मूरत
और उस पर छायी
अव्दितीय आभा की
कुछ मधुर झलकियां !!



अमित कुमार सिंह