बाक्सिंग डे
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घर में चहल पहल थी
बडे जोर शोर से
तैयारी चल रही थी
सभी कार्यक्रम स्थगित थे
सारी खरीदारी रुकी हुयी थी
आखिरकार दो दिन बाद
बाक्सिंग डे की
सेल जो थी !
सच ही है
इंसान चाहे हो हिन्दुस्तान का
या फिर हो अमरीका, कनाडा
या इंग्लिस्तान का,
मुफ्त का आकर्षण उसके
दिल को गुदगुदा जाता है,
एक के साथ एक मुफ्त का
विज्ञापन उसे लुभा ही जाता है !
देख ये हलचल टोरंटो शहर में
खिल उठा मेरा मन समंदर,
क्या ही बात है
कनाडा और हिन्दुस्तान में
रहा न अब कोई अन्तर !
साल भर से इस दिन का
इन्तजार करते लोगों के
चेहरे चमक रहे थे,
और मनपसंद वस्तु
मनचाहे दाम पर
खरीदने के लिये वो
व्याकुल हो रहे थे !
सुना था दुकानें
प्रातः पाँच बजे ही
खुल जाती हैं,
कतारें तो पूर्व संध्या पर
ही लग जातीं हैं,
कहीं मनपसंद वस्तु
हाथ से न निकल जाये,
इसलिये जनता दुकानों के
सामने ही सो जाती है !
बडे इन्तजार के बाद
आखिरकार वो दिन आ ही गया,
उत्सुकता के बादलों ने
मेरी आँखो में घेरा डाल दिया !
उस दिन कडाके की ठण्ड थी
टोपी मफलर से मैं भी
लिपटा हुआ था,
चार बजे की ब्रह्मबेला में
मै भी दुकान पर पहुँचा था,
दो सौ लोग मेरे आगे थे
और मैं समय से पीछे था !
उम्मीद की 'किरन'
होने लगी कमजोर,
तभी हुआ दुकान
खुलने का शोर,
लगा कि इतने लोगों के
बाद मैं क्या पाउँगा,
शायद इस बार कैमरे की
जगहउसका कवर ही पा पाउँगा,
और कैमरा शायद
अगले बरस ही ले पाउँगा !
तभी विचारों कि
इस आँधी पर लगा विराम,
देख लोगों की अटूट
'मुफ्त' निष्ठा को
'छूट' के प्रति इस
दैविय समर्पण को,
'अमित' दिल मेरा
भर आया,
और कनेडियनों के इस
पवित्र निशच्छल प्रेम को देख,
मैं भाव विभोर हो
कतार से बाहर आ गया !!
अमित कुमार सिंह