Monday, November 02, 2009
फादर कामिल बुल्के
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सादगी और ओज था
चेहरे पर उनके अद्भुत तेज था
जन्म से थे वो एक परदेशी
पर हिन्दी और हिन्दोस्तानियत में
थे वो बिल्कुल देशी
सन्त और समाजसेवी
फादर कामिल बुल्के थे
एक सच्चे हिन्दी प्रेमी और सेवी !
सरहदें रोक न सकीं जिनको
भारत का प्यार
खींच लाया था उनको
एक ईशा का भक्त
बन गया था रामकथा का
अन्वेषक और
'तुलसी' का पुजारी !
पढ रामचरित मानस
हुये वो भाव विह्वल
लगा दिया उन्होने
हिन्दी और राम में
अपने जीवन का
एक - एक पल !
हिन्दी की मृदुलता ने
मोह लिया जिस
फ्लेमिश का दिल
दिया उसने हिन्दी को
तोहफा एक अनमोल
कहते हैं जिसे
अंग्रेजी - हिन्दी शब्दकोश !
ममता और दयालुता
से भरा विशाल हिर्दय था
सबकी मदद के लिये
हमेशा तत्पर रहने वाला
उनका 'अमित' व्यक्तित्व था !
हिन्दी भाषियों को
हिन्दी का सम्मान
करना सीखा गये,
सन्त महापुरुष 'कामिल बुल्के' जी
हम हिन्दुस्तानीयों पर अपनी
एक अमिट पहचान छोड गये !!
अमित कुमार सिंह
कनाडा
Sunday, May 17, 2009
सोचना मना है
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बडे बडे बुध्दिजिवियों ने
बहुत सोच समझ कर
कहा है कि
सोचना मना है !
इस लालच और
दुःखों भरी दुनिया में
खुश रहना हो तो
सोचना मना है !
एक 'पवन' का झोका
आया और बोला तू
बस लिखता चला जा
ऐ कवि, कुछ ना सोच
क्योंकि सोचना मना है !
दिमाग से चलती
इस दुनिया में
अगर दिल को
जगह दिलाना है,
तो सोचना मना है !
गमों के सायों को
खुशियों का आवरण
पहनाना है तो
सोचना मना है !
उठो ! तुम भी लिखो
जो मन करे वो करो
क्योंकि खुश रहने के लिये
सोचना मना है !
आप भी पढो इस कविता को
और जो आये दिल में
वो ही बोलना,
बिल्कुल ना सोचना
क्योंकि सोचना मना है !
कविता की हो तारीफ
या हो फिर निंदा,
इसका नही है कोई गम
क्योंकि दोस्तों !
सोचना मना है !
मैं लेखनी के इशारों पे
चलता गया
और 'अमित' ये
'किरन' रचना
रचता चला गया
ये ना पूछना यारों क्यों
क्योंकि सोचना मना है !!
अमित कुमार सिंह
Sunday, April 05, 2009
बाक्सिंग डे
बाक्सिंग डे
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घर में चहल पहल थी
बडे जोर शोर से
तैयारी चल रही थी
सभी कार्यक्रम स्थगित थे
सारी खरीदारी रुकी हुयी थी
आखिरकार दो दिन बाद
बाक्सिंग डे की
सेल जो थी !
सच ही है
इंसान चाहे हो हिन्दुस्तान का
या फिर हो अमरीका, कनाडा
या इंग्लिस्तान का,
मुफ्त का आकर्षण उसके
दिल को गुदगुदा जाता है,
एक के साथ एक मुफ्त का
विज्ञापन उसे लुभा ही जाता है !
देख ये हलचल टोरंटो शहर में
खिल उठा मेरा मन समंदर,
क्या ही बात है
कनाडा और हिन्दुस्तान में
रहा न अब कोई अन्तर !
साल भर से इस दिन का
इन्तजार करते लोगों के
चेहरे चमक रहे थे,
और मनपसंद वस्तु
मनचाहे दाम पर
खरीदने के लिये वो
व्याकुल हो रहे थे !
सुना था दुकानें
प्रातः पाँच बजे ही
खुल जाती हैं,
कतारें तो पूर्व संध्या पर
ही लग जातीं हैं,
कहीं मनपसंद वस्तु
हाथ से न निकल जाये,
इसलिये जनता दुकानों के
सामने ही सो जाती है !
बडे इन्तजार के बाद
आखिरकार वो दिन आ ही गया,
उत्सुकता के बादलों ने
मेरी आँखो में घेरा डाल दिया !
उस दिन कडाके की ठण्ड थी
टोपी मफलर से मैं भी
लिपटा हुआ था,
चार बजे की ब्रह्मबेला में
मै भी दुकान पर पहुँचा था,
दो सौ लोग मेरे आगे थे
और मैं समय से पीछे था !
उम्मीद की 'किरन'
होने लगी कमजोर,
तभी हुआ दुकान
खुलने का शोर,
लगा कि इतने लोगों के
बाद मैं क्या पाउँगा,
शायद इस बार कैमरे की
जगहउसका कवर ही पा पाउँगा,
और कैमरा शायद
अगले बरस ही ले पाउँगा !
तभी विचारों कि
इस आँधी पर लगा विराम,
देख लोगों की अटूट
'मुफ्त' निष्ठा को
'छूट' के प्रति इस
दैविय समर्पण को,
'अमित' दिल मेरा
भर आया,
और कनेडियनों के इस
पवित्र निशच्छल प्रेम को देख,
मैं भाव विभोर हो
कतार से बाहर आ गया !!
अमित कुमार सिंह
Monday, March 02, 2009
और मैनें लाटरी टिकट खरीदा
और मैनें लाटरी टिकट खरीदा
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नित्य प्रतिदिन बनते
देख लोगों को लखपति,
टोरंटो शहर की लाटँरी "लोटो"
मुझे भा गयी
अपनी सोई किस्मत को
जगाने के लिये मैने भी
कुछ डालँरों की
कुर्बानी दे ही डाली !
लाटरी खरीदते ही
हम तो जनाब
डगमगाने लगे,
अपने कदमों को
जमीन की जगह
हवा में पाने लगे !
लाटरी की महिमा
आँखो में छाने लगे,
लखपति बनने के सपने
पलक झपकते ही आने लगे !
कल्पनाओं के सितारे
तुरंत ही झिलमिलाने लगे,
और लखपतिओं वाले
स्वप्न दिखाने लगे !
सपनों के महल शीघ्र ही
खडे होने लगे,
और हम यूँ ही
डालँर लूटाने लगे !
लखपति बनने की
तैयारी करने लगे,
और घर आँगन को
हम सवाँरने लगे !
शनिवार को निकलेगा
परिणाम ये सोच,
बजरंगबली और शनिदेव
दोनों को मनाने लगे
और हम अब रोज शाम
मंदिर जाने लगे !
ख्यालों - खवाबों मे हम
डूबकी लगाने लगे,
आफिस में इस्तीफे के
सपने भी आने लगे !
गाडी के माडाँल भी
पसंद करने लगे,
फार्महाउस तो हम
सपनों मे ही खरीदने लगे !
हम लखपतिओं वाली
अदा भी दिखाने लगे,
और अपने को खानदानी
रईस बताने लगे !
हम लाटरी निकलने का
इन्तजार करने लगे,
कल्पनाओं को हकीकत में
बदलते देखने लगे !
आज तो है प्रभु का दिन
नंबर भी डाले थे
छ: के छ: अपने प्यारे,
फिर काहे नही आयेंगे
सितारे साथ हमारे,
अब तो महज दोस्तों
औपचारिकता ही है बाकी,
लखपति 'अमित' तो
आपके सामने ही खडा है,
आखिर एक पल की
नींद ही तो आनी रह
गयी है बाकी !!
अमित कुमार सिंह