Thursday, December 28, 2006
भूत
भूत
-------
कल्पना नही
हकिकत हूँ,
काया नहि
एक साया हूँ मै,
इंसानों ने किया
मुझे बदनाम,
दे दिया है
'भूत' मेरा नाम |
करता हूँ कितना
मै काम,
निकल जाता हूँ
होते हि शाम |
कहते हैं भूत को
होते हैं ये बुरे,
पर हिंसा,अत्याचार,
बेईमानी और भ्रष्टाचार
ये किसने हैं करे?
इंसानों ने अब
करना शुरु कर दिया
हम पर भी अत्याचार,
डराने का खुद ही करके
करने लगे हैं हमारे
पेटों पर वार |
डरता हूँ अब इंसानो से
लेता हूँ अपना दिल थाम,
कहीं ये कर ना दें
मेरा भी काम तमाम |
हम भूत ही सही
पर हमारा भी है
एक ईमान,
डराने के अपने काम पर
देते हैं हम पूरा ध्यान |
हम ही हैं जो
कराते हैं लोगों को
इस कलियुग मे भी
ईश्वर का ध्यान,
क्या नहीं कर रहे
हम कार्य
एक महान ? ||
अमित कुमार सिंह
Friday, December 15, 2006
नव बर्ष का सन्देश
नव बर्ष का सन्देश
---------------------
नये वर्ष का सूरज चमका
लेकर आया नया सबेरा |
पेड पौधो ने भी अपनी
बाहँ पसारी
करने के लिये
नव वर्ष का अभिनंदन |
बह रहा है पवन भी
देखो लेकर एक नई उमंग |
शांत समन्दर भी मचल उठा है
बन कर एक तरंग |
पशु पक्षियों ने भी घोला
वातवरण मे मधुर गीत-संगीत |
फूलों ने खूशबू बिखेर
फैलाया चंहु ओर आनदं ही आनदं |
फैला अन्तर्मन मे
एक दिव्य ज्योति,
घुला जीवन में एक
मधुर रस,
नये साल के स्वागत मे
तुम भी हे मानव!
लग जाओ अब बस |
मिटा हिंसा को
फैला कर मानवता का सन्देश,
प्रकट करो तुम भी
अपनी 'अभिव्यक्ति',
अपना कर नव बर्ष का
ये पावन उद्देश्य ||
अमित कुमार सिंह
---------------------
नये वर्ष का सूरज चमका
लेकर आया नया सबेरा |
पेड पौधो ने भी अपनी
बाहँ पसारी
करने के लिये
नव वर्ष का अभिनंदन |
बह रहा है पवन भी
देखो लेकर एक नई उमंग |
शांत समन्दर भी मचल उठा है
बन कर एक तरंग |
पशु पक्षियों ने भी घोला
वातवरण मे मधुर गीत-संगीत |
फूलों ने खूशबू बिखेर
फैलाया चंहु ओर आनदं ही आनदं |
फैला अन्तर्मन मे
एक दिव्य ज्योति,
घुला जीवन में एक
मधुर रस,
नये साल के स्वागत मे
तुम भी हे मानव!
लग जाओ अब बस |
मिटा हिंसा को
फैला कर मानवता का सन्देश,
प्रकट करो तुम भी
अपनी 'अभिव्यक्ति',
अपना कर नव बर्ष का
ये पावन उद्देश्य ||
अमित कुमार सिंह
Monday, December 11, 2006
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
----------------
जिन्दगी मॆ है कितनॆ पल
जीवन रहॆ या न रहॆ कल
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
बन्द कर दॆखना भविष्यफल
छॊड चिन्ता कल की
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
हर पल है मूल्यवान
है तू भाग्यवान
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
दिल कि धक धक
दॆती है तुम्हॆ यॆ हक
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
हर घडी मॆ है मस्ती
दॆखॊ है यॆ कितनी सस्ती
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
कम कर अपनी व्यस्तता
जीनॆ का निकालॊ सही रस्ता
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
पल पल मॆ जीना सीखॊ
चॆहरॆ पर लाकर मुस्कान
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
काम नही हॊगा कभी खत्म
उसमॆ सॆ ही निकालॊ वक्त
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
दुश्मनी मॆ न करॊ समय बरबाद
दॊस्तॊ सॆ कर लॊ अपनी दुनिया आबाद
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
कर गरीबॊ का भला
पाऒ मन का सकून
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
ख्वाबॊ सॆ बाहर निकल
रंग बिरंगी दुनिया दॆखॊ
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
कम कर अपनी चाहत
बन कर दूसरॊ का सहारा
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
बांट कर दुख दर्द सबका
भुला कर अपना पराया
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
जीवन कॊ ना तौल पैसॊ सॆ
यॆ तॊ है अनमॊल
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
सुख और दुख कॊ पहचान
है यॆ जीवन का रस
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
ईश्वर नॆ बनाया सबकॊ ऎक है
तू भी बनकर नॆक
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
अपनॆ साथ दूसरॊ कॆ आँसू पॊछ
पीकर गम पराया
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
खुश रहकर बांटॊ खुशियां
मुस्कुरातॆ हुऎ बिखॆरॊ फूलॊं की कलियां
रॊज हमॆशा खुश रहॊ |
बांध लॆ तू यॆ गाँठ
समझ लॆ मॆरी बात
पढ कर मॆरी कविता बार बार
रॊज हमॆशा खुश रहॊ
रॊज हमॆशा खुश रहॊ ||
अमित कुमार सिह
Friday, December 08, 2006
विवाह
विवाह
---------
विवाह एक
सुन्दर शब्द
एक मिठास भरी
आवाज
एक पवित्र
बन्धन
एक मधुर
धुन
एक चन्चल
चाहत
एक प्यारा
मिलन
एक सम्पूर्णता
का अहसास
एक जिम्मॆदार
पहल
एक समाजिकता
का आवरण
एक सभ्यता
का उदय
एक नवजीवन
का स्ऋजन
एक दुसरॆ कॆ
सुख का ख्याल
एक अपनॆपन
की भावना
एक जन्मॊ जन्मॊ
का साथ
एक सादगी
अनॊखी सहजता
एक सुखद
अहसास
एक समझादारी
भरा निर्णय
एक आगॆ बढनॆ
की ललक
एक सुन्दर भविष्य
की झलक
एक फुलॊ का
बन्धन
एक इन्तजार
की आह्ट
एक आकाश कॊ
छूनॆ की चाहत
एक गजब का
आत्मविश्वाश
एक मुश्किलॊ सॆ
लडनॆ की ताकत
एक जादू भरा
शब्द
जिसका ख्याल
आयॆ हर वक्त
एक पावन
प्यार भरी पहल
विवाह कॊ अपना कर
जीवन कॊ बना ऎ मित्र
'अमित' तू भी सफल ||
अमित कुमार सिह
सॊम गाथा
सॊम गाथा
-----------
बचपन मॆ दॆखा
था ऎक सपना,
शादी कब हॊगा
इनका अपना |
पढ पढ कॆ
समय किया बरबाद,
अब पछतातॆ है,
कन्याऒ कॆ साथ
जीवन क्यॊ नही
किया आबाद |
रॊज बनातॆ है
यॆ नयॆ नयॆ प्लान,
पर कॊइ भी नही आता है
इनकॆ काम |
लडकिया नही
दॆती है लिफ्ट,
दॆ दॆ कर थक
गयॆ है यॆ गिफ्ट |
भॊलॆ भालॆ और
सुन्दर मुख, बदन
है यॆ वीरवान,
पर कन्यायॆ उनकॆ
इन गुणॊ सॆ
है बिल्कुल अन्जान |
कभी थी कॊई
ऎक 'वनिता',
अब इस अन्धॆरॆ जीवन कॊ
ऎक 'ज्यॊति' की तलाश है
नही करॆगी जॊ
उन्हॆ निराश,
ऐसा इस 'सॊम'कॊ
'अमित' विश्वास है ||
अमित कुमार सिह
Thursday, December 07, 2006
जीबन
जीबन का ह?
जीबन का ह?
रहस्य बा ई अनोखा
चलत रहे का
मंतर इम्मे
कौउन है फूँका?
अजब बा
ई पहेली
एक को खोलौ
तो दूजा उलझे
जीवन का
ई गुत्थी,
भवा सुलझाये न
सुलझै।
का बताई,
अब तोहके,
हुयै लोग
बहुत ज्ञानी,
बोलत हैं
विज्ञान की बानी।
पर जीवन केबुझै में,
बन गयो
भवा यो
भी अज्ञानी।
पढ़ा रहे
किताबन में,
जीवन बा,
सूरज का रोषनी में,
पानी की बूंदन में,
माटी में बा
आग और अकाषो
में बा,
हवो में बहत
ह जीवन,
पर भवा!
हम हई
निपट मूढ़
औउर अज्ञानी
समझ नइखे आवत
बड़े लोगन क
इ बानी।
हमरे समझ से
त करत जा
तू आपन काम
निभावा आपन
जिम्मेवारी,
कहिला जे के
हम करम
करत जा
हो लोगन
जब तक ह
दम में दम।
के हू का
जी न दु:खावा
भवा ऐसन
तू निभावा।
जौन काम आवे
औरन के
वो ही के
जानिला भवा
हम जीवन
कहे जमनवा
चाहे ऐके हमार
नादानी
पर भइया
ई हे बा
हमरी बानी।
-अमित कुमार सिंह
जीबन का ह?
रहस्य बा ई अनोखा
चलत रहे का
मंतर इम्मे
कौउन है फूँका?
अजब बा
ई पहेली
एक को खोलौ
तो दूजा उलझे
जीवन का
ई गुत्थी,
भवा सुलझाये न
सुलझै।
का बताई,
अब तोहके,
हुयै लोग
बहुत ज्ञानी,
बोलत हैं
विज्ञान की बानी।
पर जीवन केबुझै में,
बन गयो
भवा यो
भी अज्ञानी।
पढ़ा रहे
किताबन में,
जीवन बा,
सूरज का रोषनी में,
पानी की बूंदन में,
माटी में बा
आग और अकाषो
में बा,
हवो में बहत
ह जीवन,
पर भवा!
हम हई
निपट मूढ़
औउर अज्ञानी
समझ नइखे आवत
बड़े लोगन क
इ बानी।
हमरे समझ से
त करत जा
तू आपन काम
निभावा आपन
जिम्मेवारी,
कहिला जे के
हम करम
करत जा
हो लोगन
जब तक ह
दम में दम।
के हू का
जी न दु:खावा
भवा ऐसन
तू निभावा।
जौन काम आवे
औरन के
वो ही के
जानिला भवा
हम जीवन
कहे जमनवा
चाहे ऐके हमार
नादानी
पर भइया
ई हे बा
हमरी बानी।
-अमित कुमार सिंह
मशहूर
''मशहूर''
कठिन है रास्ता ये
मंजिल है दूर
घबराना नहीं
ऐ राही,
नहीं है तू
मजबूर!
प्रयत्न करता जा
बस तू
करता ही जा,
लेकिन इसमें
लगन हो जरूर।
कामयाबी की
बुलंदी तू
छुएगा,
हो जायेगा
इस तरह
ऐ दोस्त!
तू भी एक दिन
मशहूर!
किरन सिंह
कठिन है रास्ता ये
मंजिल है दूर
घबराना नहीं
ऐ राही,
नहीं है तू
मजबूर!
प्रयत्न करता जा
बस तू
करता ही जा,
लेकिन इसमें
लगन हो जरूर।
कामयाबी की
बुलंदी तू
छुएगा,
हो जायेगा
इस तरह
ऐ दोस्त!
तू भी एक दिन
मशहूर!
किरन सिंह
मैंने हवा से कहा
सुबह हो रही है
मैंने हवा से कहा।
हवा बह रही है,
मैंने जहाँ से कहा॥
सुबह की बेला आयी,
फिर भी तू सो रहा है।
रे मनुष्य! उठ जा,
ये हवा ने मुझसे कहा॥
मैंने हवा से कहा,
दुनिया सो रही है।
फिर तू क्यों
बह रही है।
जवाब है हवा का,
नादान है तू,
नहीं हूँ मैं मनुष्य।
नि:स्वार्थ भाव से
बहते जाना
रुकना न ये काम
है हमारा॥
समुद्र के सीने को
चीर कर,
चट्टानों से टकराकर भी
बहते जाना,
बस बहते जाना
ही काम है मेरा।
समझ सको अगर तुम
ये संदेश मेरा
तो जहाँ में हो
जाये सबेरा।
तब हवा ये कहेगी
सुबह हो चुकी है,
हवा बह रही है
मनुष्य चल रहा है।
मनुष्य और हवा का
ये संगम होगा
कितना प्यारा,
खिल उठेगा जब
इससे संसार हमारा॥
हवा ने दिया संदेश
मानव को मिला ये उपदेश
कर्म-पथ पर बढ़ते जाना
सुबह हो या शाम।
बाधाओं से न तुम
घबराना,
हवा की तरह
बस तुम चलते जाना।
पूरे होंगे सपने तुम्हारे
जग में फैलेगा नाम तेरा,
रुकना न तुम,
बस बहते जाना,
हवा से तुम
बातें करते जाना।
रुक-रुक कर लेना तुम आराम
ये भी आएगा तुम्हारे काम,
हवा तो सिर्फ हवा है,
सिर्फ उड़ते मत जाना।
पैर हों तुम्हारे जमीन पर,
सोच हो तुम्हारी
आकाश पर,
मान लो ये संदेश हमारा,
फिर होगा संगम
हमारा और तुम्हारा।
मुझसे ये हवा ने कहा,
मैं चुपचाप सुनता रहा।
कहने को तो है बहुत
कुछ पर,
अब तू जा,
सुबह हो रही है,
मैंने हवा से कहा।
अमित कुमार सिह्
यमराज का इस्तीफा
यमराज का इस्तीफा
एक दिन
यमदेव ने दे दिया
अपना इस्तीफा।
मच गया हाहाकार
बिगड़ गया सब
संतुलन,
करने के लिए
स्थिति का आकलन,
इन्द्र देव ने देवताओं
की आपात सभा
बुलाई
और फिर यमराज
को कॉल लगाई।
'डायल किया गया
नंबर कृपया जाँच लें'
कि आवाज तब सुनाई।
नये-नये ऑफ़र
देखकर नम्बर बदलने की
यमराज की इस आदत पर
इन्द्रदेव को खुन्दक आई,
पर मामले की नाजुकता
को देखकर,
मन की बात उन्होने
मन में ही दबाई।
किसी तरह यमराज
का नया नंबर मिला,
फिर से फोन
लगाया गया तो
'तुझसे है मेरा नाता
पुराना कोई' का
मोबाईल ने
कॉलर टयून सुनाया।
सुन-सुन कर ये
सब बोर हो गये
ऐसा लगा शायद
यमराज जी सो गये।
तहकीकात करने पर
पता लगा,
यमदेव पृथ्वीलोक
में रोमिंग पे हैं,
शायद इसलिए,
नहीं दे रहे हैं
हमारी कॉल पे ध्यान,
क्योंकि बिल भरने
में निकल जाती है
उनकी भी जान।
अन्त में किसी
तरह यमराज
हुये इन्द्र के दरबार
में पेश,
इन्द्रदेव ने तब
पूछा-यम
क्या है ये
इस्तीफे का केस?
यमराज जी तब
मुँह खोले
और बोले-
हे इंद्रदेव।
'मल्टीप्लैक्स' में
जब भी जाता हूँ,
'भैंसे' की पार्किंग
न होने की वजह से
बिन फिल्म देखे,
ही लौट के आता हूँ।
'बरिस्ता' और 'मैकडोन्लड'
वाले तो देखते ही देखते
इज्जत उतार
देते हैं और
सबके सामने ही
ढ़ाबे में जाकर
खाने-की सलाह
दे देते हैं।
मौत के अपने
काम पर जब
पृथ्वीलोक जाता हूँ
'भैंसे' पर मुझे
देखकर पृथ्वीवासी
भी हँसते हैं
और कार न होने
के ताने कसते हैं।
भैंसे पर बैठे-बैठे
झटके बड़े रहे हैं
वायुमार्ग में भी
अब ट्रैफिक बढ़ रहे हैं।
रफ्तार की इस दुनिया
का मैं भैंसे से
कैसे करूँगा पीछा।
आप कुछ समझ रहे हो
या कुछ और दूँ शिक्षा।
और तो और, देखो
रम्भा के पास है
'टोयटा'
और उर्वशी को है
आपने 'एसेन्ट' दिया,
फिर मेरे साथ
ये अन्याय क्यों किया?
हे इन्द्रदेव।
मेरे इस दु:ख को
समझो और
चार पहिए की
जगह
चार पैरों वाला
दिया है कह
कर अब मुझे न
बहलाओ,
और जल्दी से
'मर्सिडीज़' मुझे
दिलाओ।
वरना मेरा
इस्तीफा
अपने साथ
ही लेकर जाओ।
और मौत का
ये काम
अब किसी और से
करवाओ।
अमित कुमार सिंह
एक दिन
यमदेव ने दे दिया
अपना इस्तीफा।
मच गया हाहाकार
बिगड़ गया सब
संतुलन,
करने के लिए
स्थिति का आकलन,
इन्द्र देव ने देवताओं
की आपात सभा
बुलाई
और फिर यमराज
को कॉल लगाई।
'डायल किया गया
नंबर कृपया जाँच लें'
कि आवाज तब सुनाई।
नये-नये ऑफ़र
देखकर नम्बर बदलने की
यमराज की इस आदत पर
इन्द्रदेव को खुन्दक आई,
पर मामले की नाजुकता
को देखकर,
मन की बात उन्होने
मन में ही दबाई।
किसी तरह यमराज
का नया नंबर मिला,
फिर से फोन
लगाया गया तो
'तुझसे है मेरा नाता
पुराना कोई' का
मोबाईल ने
कॉलर टयून सुनाया।
सुन-सुन कर ये
सब बोर हो गये
ऐसा लगा शायद
यमराज जी सो गये।
तहकीकात करने पर
पता लगा,
यमदेव पृथ्वीलोक
में रोमिंग पे हैं,
शायद इसलिए,
नहीं दे रहे हैं
हमारी कॉल पे ध्यान,
क्योंकि बिल भरने
में निकल जाती है
उनकी भी जान।
अन्त में किसी
तरह यमराज
हुये इन्द्र के दरबार
में पेश,
इन्द्रदेव ने तब
पूछा-यम
क्या है ये
इस्तीफे का केस?
यमराज जी तब
मुँह खोले
और बोले-
हे इंद्रदेव।
'मल्टीप्लैक्स' में
जब भी जाता हूँ,
'भैंसे' की पार्किंग
न होने की वजह से
बिन फिल्म देखे,
ही लौट के आता हूँ।
'बरिस्ता' और 'मैकडोन्लड'
वाले तो देखते ही देखते
इज्जत उतार
देते हैं और
सबके सामने ही
ढ़ाबे में जाकर
खाने-की सलाह
दे देते हैं।
मौत के अपने
काम पर जब
पृथ्वीलोक जाता हूँ
'भैंसे' पर मुझे
देखकर पृथ्वीवासी
भी हँसते हैं
और कार न होने
के ताने कसते हैं।
भैंसे पर बैठे-बैठे
झटके बड़े रहे हैं
वायुमार्ग में भी
अब ट्रैफिक बढ़ रहे हैं।
रफ्तार की इस दुनिया
का मैं भैंसे से
कैसे करूँगा पीछा।
आप कुछ समझ रहे हो
या कुछ और दूँ शिक्षा।
और तो और, देखो
रम्भा के पास है
'टोयटा'
और उर्वशी को है
आपने 'एसेन्ट' दिया,
फिर मेरे साथ
ये अन्याय क्यों किया?
हे इन्द्रदेव।
मेरे इस दु:ख को
समझो और
चार पहिए की
जगह
चार पैरों वाला
दिया है कह
कर अब मुझे न
बहलाओ,
और जल्दी से
'मर्सिडीज़' मुझे
दिलाओ।
वरना मेरा
इस्तीफा
अपने साथ
ही लेकर जाओ।
और मौत का
ये काम
अब किसी और से
करवाओ।
अमित कुमार सिंह
Thursday, November 23, 2006
माटी की गंध
माटी की गंध
------------
कभी अच्छी
तॊ कभी बुरी
लगती है
माटी की गन्ध |
लगती है
ऎक सुन्दर सी
सुगन्ध,
अगर हॊ इनमॆ
खलियानॊ,बगानॊ
कॆ रंग |
बन जाती है
यही ऎक
बुरी गन्ध,
रहती है जब
यॆ नालॊं
कॆ संग |
गरीबॊ कॆ झॊपडॊ मॆ
हॊती है बॆमॊल,
रईसॊ कॆ आंगन मॆ
हॊ जाती है यॆ अनमॊल |
बंजर है तॊ
विराना ही है
इसका साथी,
उपजाउ हॊकर
बन जायॆ यॆ
किसानॊ कि थाती |
माटी का यॆ रंग
हमॆ यॆ सिखलायॆ,
काम अगर
दूसरॊ कॆ आयॆ,
अच्छी संगत
अगर अपनायॆ,
तॊ फैलॆगी
तुम्हारी गंध
बनकॆ ऎक सुगंध,
और मिटनॆ
सॆ पहलॆ,
माटी मॆ मिलने
सॆ पहलॆ,
जान जायॆगा
तॆरा यॆ तन
जीवन का
सही रंग ||
अमित कुमार सिह
------------
कभी अच्छी
तॊ कभी बुरी
लगती है
माटी की गन्ध |
लगती है
ऎक सुन्दर सी
सुगन्ध,
अगर हॊ इनमॆ
खलियानॊ,बगानॊ
कॆ रंग |
बन जाती है
यही ऎक
बुरी गन्ध,
रहती है जब
यॆ नालॊं
कॆ संग |
गरीबॊ कॆ झॊपडॊ मॆ
हॊती है बॆमॊल,
रईसॊ कॆ आंगन मॆ
हॊ जाती है यॆ अनमॊल |
बंजर है तॊ
विराना ही है
इसका साथी,
उपजाउ हॊकर
बन जायॆ यॆ
किसानॊ कि थाती |
माटी का यॆ रंग
हमॆ यॆ सिखलायॆ,
काम अगर
दूसरॊ कॆ आयॆ,
अच्छी संगत
अगर अपनायॆ,
तॊ फैलॆगी
तुम्हारी गंध
बनकॆ ऎक सुगंध,
और मिटनॆ
सॆ पहलॆ,
माटी मॆ मिलने
सॆ पहलॆ,
जान जायॆगा
तॆरा यॆ तन
जीवन का
सही रंग ||
अमित कुमार सिह
अगरॆज बिलार
अगरॆज बिलार
--------------
चलत चलत सरकी पॆ
दॆखा भवा ऎक
बिलार,
करत रहा जॆकॆ
ऒकरा मालिक
बडा दुलार |
बुलाया मालिक नॆ ऒकॆ
कहा अगरॆजी मॆ
'कम आन पूसी',
बिलार उछरी
और आ गयी
ऒकरा गॊदी मा
खुसी खुसी |
हम सॊचा हमहु
बुलाई ऎक बार
तनी दॆखी हमरॆ पास
आवत ह् कि नाही,
हम कहॆ
आ जा पूसी पूसी
उ लगी हमका घूरनॆ,
हमका लगा की
भवा का गलत
हॊ गवा ?
कछु गलत त नाहि बॊला
फिर ई का हॊ गवा |
मन मॆ फिर ई सॊचा
जौउन इकरा मालिक बॊला
हमहु अगर उहॆ बॊली
तब का हॊई ?
सॊच कॆ ई तब
हम कहा
'कम आन पूसी',
उ बिलर उछ्रर कॆ
हमरा पास आ गई|
तब हम ई
जानॆ भवा
ई त ह
अगरॆज बिलार
आपन दॆशी ना जानॆ,
काहॆ न हॊ लॊगन
ह् इ लन्दन का किस्सा,
इहा कुकुरॊ बिलार्
अगरॆजी है जानॆ |
सॊ भवा 'अमित',
तू औउर तुमहरा भॊजपुरी बिरादरी
हॊ जा अब सावधान
औउर करा
जमा कॆ हॊ लॊगन,
अईसन परयास
कि परदॆशी बिलारॊ कॆ
आवॆ तॊहार
भाषा रास ||
अमित कुमार सिह
--------------
चलत चलत सरकी पॆ
दॆखा भवा ऎक
बिलार,
करत रहा जॆकॆ
ऒकरा मालिक
बडा दुलार |
बुलाया मालिक नॆ ऒकॆ
कहा अगरॆजी मॆ
'कम आन पूसी',
बिलार उछरी
और आ गयी
ऒकरा गॊदी मा
खुसी खुसी |
हम सॊचा हमहु
बुलाई ऎक बार
तनी दॆखी हमरॆ पास
आवत ह् कि नाही,
हम कहॆ
आ जा पूसी पूसी
उ लगी हमका घूरनॆ,
हमका लगा की
भवा का गलत
हॊ गवा ?
कछु गलत त नाहि बॊला
फिर ई का हॊ गवा |
मन मॆ फिर ई सॊचा
जौउन इकरा मालिक बॊला
हमहु अगर उहॆ बॊली
तब का हॊई ?
सॊच कॆ ई तब
हम कहा
'कम आन पूसी',
उ बिलर उछ्रर कॆ
हमरा पास आ गई|
तब हम ई
जानॆ भवा
ई त ह
अगरॆज बिलार
आपन दॆशी ना जानॆ,
काहॆ न हॊ लॊगन
ह् इ लन्दन का किस्सा,
इहा कुकुरॊ बिलार्
अगरॆजी है जानॆ |
सॊ भवा 'अमित',
तू औउर तुमहरा भॊजपुरी बिरादरी
हॊ जा अब सावधान
औउर करा
जमा कॆ हॊ लॊगन,
अईसन परयास
कि परदॆशी बिलारॊ कॆ
आवॆ तॊहार
भाषा रास ||
अमित कुमार सिह
Tuesday, November 21, 2006
Tuesday, November 14, 2006
दीवाना रवि
---------
गॊरी गॊरी
लडकियॊ का
दिवाना लन्दन की
सडकॊ पर
मन्डराता , ऎक दीवाना
नाम जिसका रवि,
मित्र था उसका यॆ कवि
अग्रॆजॊ सॆ
प्रभावित
उनकी
रहन सहन का
कायल था वॊ,
कॊई गॊरी हॊ
उसकि भी दिवानी
दिन रात सॊचता
रहता था यही जॊ
रवि बाबू बनतॆ तॊ
थॆ बडॆ समझदार,
पर दिल कॆ थॆवॊ उदार ,
झटकॆ तॊ खायॆ
अनॆकॊ बार,
पर अपनॆ भॊलॆपन सॆ
हमॆशा करतॆ थॆ
वॊ ईन्कार
बीयर कॊ दारु
कह्कर पीतॆ थॆ
और् नशा न हॊनॆ
पॆ भी झूमतॆ थॆ
हिन्दी फिल्मॊ की
हसी उडातॆ,
अग्रॆजी फिल्मॊ की
करतॆ वॊ खूब,
वकालत थॆ,
विरॊध करनॆ पर
दुश्मन की तरह
नजर वॊ आतॆ थॆ
गॊरीयॊ सॆ आखॆ चार
करनॆ की हसरतॆ लियॆ हुयॆ
आज भी लन्दन की
सडकॊ पर रवि बाबु
मडरा रहॆ है
और् पुछनॆ पर
'अमित'यॆ शरमा रहॆ है
अमित कुमार सिह
Monday, November 13, 2006
दीप प्रकाश
दीप प्रकाश
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दीवाली का दिन था
और मै था
अपनॊ सॆ दूर
लगता था
शायद खुदा कॊ
यही है मन्जूर
जला दीपक कॊ
याद कर रहा था
पुरानी यादॊ कॊ,
उन झिलमिलाति
रॊशनी और पठाकॊ
कॆ शॊर कॊ,
दॊस्तॊ कॆ ठहाकॊ
और बडॊ कॆ
स्नॆह् कॊ
तभी अचानक
अधॆरा छा गया,
दीपक बुझ गया था
और मै फिर सॆ
तन्हा हॊ गया था
पल भर मॆ ही
प्रकाश सॆ मै
अन्धकार मॆ आ गया,
और जीवन की
इस छडभन्गुरता का
ठन्डा सा अहसास
पा गया
दीपक बुझ गया
पर मुझॆ राह दिखा गया,
निस्वार्थ भाव सॆ
कर्म करतॆ हुयॆ,
रॊशन करॊ इस सन्सार कॊ,
मिटा कर भॆद्
अपनॆ परायॆ,
दॆश परदॆश का,
निश दिन
परॊपकार तुम करॊ
अमित कुमार सिह्
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दीवाली का दिन था
और मै था
अपनॊ सॆ दूर
लगता था
शायद खुदा कॊ
यही है मन्जूर
जला दीपक कॊ
याद कर रहा था
पुरानी यादॊ कॊ,
उन झिलमिलाति
रॊशनी और पठाकॊ
कॆ शॊर कॊ,
दॊस्तॊ कॆ ठहाकॊ
और बडॊ कॆ
स्नॆह् कॊ
तभी अचानक
अधॆरा छा गया,
दीपक बुझ गया था
और मै फिर सॆ
तन्हा हॊ गया था
पल भर मॆ ही
प्रकाश सॆ मै
अन्धकार मॆ आ गया,
और जीवन की
इस छडभन्गुरता का
ठन्डा सा अहसास
पा गया
दीपक बुझ गया
पर मुझॆ राह दिखा गया,
निस्वार्थ भाव सॆ
कर्म करतॆ हुयॆ,
रॊशन करॊ इस सन्सार कॊ,
मिटा कर भॆद्
अपनॆ परायॆ,
दॆश परदॆश का,
निश दिन
परॊपकार तुम करॊ
अमित कुमार सिह्
Wednesday, November 08, 2006
परदेसी सबॆरा
परदेसी सबॆरा
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सुबह् सुबह् आखॆ खुली
हॊ गया था सबॆरा
मन मॆ जगा ऎक कौतुहल
कैसा हॊगा यॆ
परदेसी सबॆरा
बात है उन दिनॊ कि
था जब मै लन्दन मॆ
लपक कर उठा मै
खॊल डाली सारी
खिडकिया ,
भर गया था अब
कमरॆ मॆ उजाला
रवि कि किरनॊ नॆ
अब मुझ पर था
नजर डाला
ध्यान सॆ दॆखा
तॊ पाया नही है
अन्तर उजालॆ की किरनॊ मॆ
सबॆरॆ की ताज़गी मॆ
या फिर बहती सुबह
की ठन्डी हवाऒ मॆ ,
पाया था मैनॆ उनमॆ भी
अपनॆपन का ऐहसास
लगता था जैसॆ कॊई
अपना हॊ बिल्कुल पास
मैनॆ तब यॆ जाना
अलग कर दू
अगर भौतिकता की
चादर कॊ तॊ
पाता हू एक ही
है सबॆरा ,
चाहॆ हॊ वॊ लन्दन
या फिर हॊ प्यारा
दॆश मॆरा
अमित कुमार सिह
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