Tuesday, September 11, 2007
कौन है बूढ़ा
कौन है बूढ़ा
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जीवन के सब रंग
देख चुका,
बैठा हूँ
उम्र के आखिरी
पड़ाव पर!
ढ़ल चुकीहै काया
अपनों के बीच
में ही हो
गया हूँ पराया।
सेवा निवृत्ति के बाद
अचानक सा
सब बदल गया
घिरा रहने वाला
भीड़ों से
दिख रहा है आज
बिल्कुल अकेला।
वही है तन,
वही है काया
पल भर में ही
खुद को मैंने
उपेक्षित क्यों है पाया।
जटिल है स्थिति ये
समाधान की है
सिर्फ आस।
गूँज रहा है
प्रश्न ये,
मन में मेरे बार-बार,
क्षण भर पहले
भरा रहने वाला
अनंत ऊर्जा से
हो गया हूँ
क्या मैं अब ऊर्जाहीन,
बूढ़ा, लाचार
और बेकार?
पर आज के युवाओं
में फैले इच्छा शक्ति
की थकान और
वैचारिक शिथिलता को
देखकर सोचता हूँ-
कैसा है समाज
ये रूढ़ा,
कहना किसे चाहिए
और कह किसे
रहा है बूढ़ा।
अमित कुमार सिंह
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5 comments:
सच को दर्शाती सुन्दर रचना. यही तो समाज है.
Aapki kavita bahut achchhi lagi iske liye aap badhai ke patra hain.
bahut khuub.....yahi hota hai.
अमित जी, बहुत सुन्दर , सरल चित्रण है बुड़ापे का, वो उम्र जो सबको डराती है। हाँ सच है आज कल की पीड़ी बहुत थकी हुई है।
amit ji aap ki rachana padh kar is ke yatharth par dukh hua to aap ki abhivyakti par santosh.
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