Tuesday, April 15, 2008

क़ैसे करु वर्णन ?

क़ैसे करु वर्णन ?
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लेखनी हुयी परेशान
कैसे लिखूँ उनका नाम,
उनके हसीन चेहरे पर
छायी मधुर 'किरन' का
कैस करु वर्णन,
सोचते -सोचते हो गयी
लेखनी भी बेचैन,
और लो ये तो
हो गयी सुबह से शाम !


सूर्य के प्रकाश से
प्रज्जवलित मुख का
वर्णन भी न कर पाया
और चांदनी ने अपनी
आभा उन पर,
बिखेर डाला !


आज कवि के
शब्दों ने मौन
क्यों है किया धारण?
नहीं है ये
बात साधारण !



कहना तो बहुत
कुछ चाहता हूँ,
पर शब्दों का
चयन नहीं कर
पा रहा हूँ !


चंचल हैं उनके
चितवन,
कटार सी तीखीं
हैं निगाहें,
अधरों पर छायी
मधुर मुस्कान है,
गुलाबी उनके
कपोल हैं,
चेहरा उनका,
चन्द्रमा सा गोल है,
उस पर जो कातिल
तिल है,
देख उसे होता
उद्देलित मेरा
दिल है !



सोच जिसे,
पुलकित हुआ मेरा मन है,
बाहें फैलाये,
खुशियां समेटने को
बेचैन ये दिल है !


श्यामल घटाओं सी
रेशमी जुल्फें हैं,
जिन पर अरुणिमा सा
चमकता सिन्दूर है,
करता चित्त की
वासनाओं जो दूर है,
क्या गजब का
चेहरे पर उनके
छाया नूर है !


पायलों का संगीत
उनके आने की
देता आहट है,
जल प्रपात सी
स्वच्छंद उनकी
खिलखिलाहट है,
क्या ही सुन्दर उनके
चेहरे की बनावट है !


मदमस्त उनकी चाल
उस पर उनकी
मतवाली अदा,
लेती है दिलों को हर,
देख ले कोई उन्हे
अगर सिर्फ पल भर !

उनके सौन्दर्य का
यदि करने लगे ये
आशिक 'अमित' वर्णन,
तो दोस्तों-

चाहिये अम्बर भर कागज,
समुन्दर दी स्याही,
पेडों की बना लूं
गर लेखनी,

तो फिर शायद प्रस्तुत कर पाये
ये प्रेमी कवि,
उनके मोहनी मूरत
और उस पर छायी
अव्दितीय आभा की
कुछ मधुर झलकियां !!



अमित कुमार सिंह

2 comments:

Manas Path said...

अच्छी कविता है.

Udan Tashtari said...

सही है, लिखते रहिये.शुभकामनायें.