उनकी याद
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आती है याद उनकी,
दिल को बहुत सताती है
याद उनकी,
नाश्ते में खाता हूँ जब सैंडविच,
पकौडों की याद आती है बहुत!
दोपहर में जब खाता हूँ,
पिज्जा या बर्गर,
दाल रोटी की
याद आती है बहुत !
रात के खाने में देख नूड्ल्स
याद आती है,
बांसमती चावल कि
वो भीनी सुगन्ध !
मन हो जाता है
व्याकुल,
याद आते हैं जब वो दिन,
आधुनिकता कि दौड में,
जब लगते थे पकौडे पिछडे,
दाल रोटी कि
उडाते थे हँसी,
और बांसमती को
ठुकराते थे हम कभी !
श्रीमती जी करतीं थीं जब
भोजन करने का "किरन" आग्रह,
देते थे तब उन्हे ताने,
पिज्जा या बर्गर क्यों
नहीं आता तुम्हे बनाने!
लहसुन धनिये कि वो चटनी
सरसो का वो साग,
दिल को गुदगुदा जाती है
आज भी वो तडके वाली
चने की दाल!
उन गलतियों का
करता हूँ अहसास,
परदेशी शहर 'टोरंटो' में
जब आती है,
स्वदेशी खाने की "अमित" याद!!
- अमित कुमार सिंह
4 comments:
उन गलतियों का
करता हूँ अहसास,
परदेशी शहर 'टोरंटो' में
जब आती है,
स्वदेशी खाने की "अमित" याद!!
waah kya baat hai
टोरांटो में तो बहुत सी हिन्दुस्तानी/पाकिस्तानी खाने की दुकानें मिल जायेंगी आपको, सस्ता और बहुत अच्छा हिन्दुस्तानी खाना। ये और बात है कि घर के खाने की बात कुछ और होती है।
sahi haih dost, keep coming words 4rm ur pen :)
Wah Amit,
Tumney to sahi kaha hai,
Per mujheu lagta hai ke kuch lines, isbaat pe bhi honi chahiye the,ke mereghar mein tumhey jo ham kayi baar indian dinner kartey haiin, woh tumhari yaad ko light kar deta hoga.
Kavita bahut badiya thi.
ab ek aaj ke snow storm pe bhi likh do.
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