Sunday, May 06, 2007

चेहरे पर चेहरा


चेहरे पर चेहरा
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मुखौटा पहन अपनी
पहचान छुपाये हुये है
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है


समेट अपने अन्दर
दुःखों का समन्दर,
चेहरे पर हँसी
चिपकाये हुये है
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है


वास्तविकता का
सामना करने से
घबराये हुये है,
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है


चेहरे पर पडी
झुर्रियों को,
मेकअप में
छुपाये हुये है
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है


जिसे समझा था दोस्त
निकला वो दुश्मन,
सच्चाई से कितनी दूरी
बनाये हुये है
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है


हकीकत को भगा दूर
भ्रम में जीने की
आदत बनाये हुये है,
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है


दिखावे के लोभ में

अपनों को ही
सताये हुये है,
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है


खुद ही को
धोखा देकर,
खुश रहने के
सपने सजाये हुये है
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है


चेहरे पर चिपके
इस चेहरे को देखकर
सोचता है 'किरन' ये मन-
क्यों कोमल संवेदनाओं
के मोल पर मशीनी,
हो रहा है इंसान ?

आधुनिकता की
इस दौड में,
अकेला ही तो
रह गया है वो,

जाने क्या चाहता है
आज का ये इंसान ?


अमित कुमार सिंह

4 comments:

सुनीता शानू said...

वाह अमित जी सच ही लिखा है आज एक चेहरे पर ईंसान कई चेहरे लगाये हुए है,आधुनिकता की एसी आंधी चली है की सभी रिश्ते नाते हम भूल से गये है बस होड़ लगी है आगे बढ़ने की। चाहे इसके लिये हमारी सभ्यता,संस्कृति,परम्पराएं सभी कुछ दाव पेर लगा बैठे हैं।
दिखावे के लोभ में
अपनों को ही
सताये हुये है,
आज का इंसान
चेहरे पर चेहरा
लगाये हुये है
बहुत अच्छा लिखा है बधाई
सुनीता(शानू)

संजय बेंगाणी said...

बहुत खुब. सही कहा.

Pramod Kumar Upadhyay said...

Very True..in this modernised and fast life...people hide the reality...and forget the relationship and always looking for growth and growth and leaving behind and losing the beauty of realationship which our culture used to have ...looks people are stepping toward westernization

-Pramod

Anonymous said...

Bahut Achhi kavita hai.
Jeevan mein bahut ras hai, jise ham is banaavtipan ke chakkar mein kho dete hain.

Achha wo apna mukhauta deejiyega mujhe, kuch kaam hai :-)