Friday, October 29, 2010

एक कुंवारे का जन्मदिन

एक कुंवारे का जन्मदिन
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दिन था २७ मार्च

आप सोच रहें
होंगे क्या है
इसमे ख़ास?

आज उनका
जन्मदिन है
लेकिन वो
चिंता में लीन हैं
परेशान होकर
टहल रहें हैं

दोस्तों पर

बरस रहें हैं
नहीं मनायेंगे
इस बार अपने
जन्मदिन का जश्न,
इस घोषणा के साथ
कर दिया उन्होंने
हमसे विचित्र एक प्रश्न

कुआंरा तीस का
क्या है ये मौका
ख़ुशी के गीत का ?

हमने कहा

हे मित्र आलोक !
स्त्री तो मुसीबतों
का पिटारा है,
खुदा का शुक्र है
तू अभी तक कुवांरा है

ये सुनकर वो

फट पड़े,
गालियों का प्रसाद
खुले दिल से
बांटने लगे,
और कुवांरों की
महफ़िल में आने
के लिए,
खुद को ही
कोसने लगे

बचपन से ही

कर रहा हूँ
प्रयास दिन और रात,
पर नारी है कि
आती नहीं मेरे हाथ

मित्रों! तुम यूँ

न करो मेरे
जख्मों पर वार
बार-बार,
मेरी पीड़ा का
है ये सार

ये सुनकर हम
उनके दर्द को
समझ गए और
लड़की पटाने के
नए डाउनलोडेड
नुस्खे उन्हें बताने लगे,

लडकियों की साइकोलोजी
उन्हें विस्तार से
समझाने लगें

अगले जन्मदिन तक

वो एक नहीं दो हों
की शुभकामनाओं
के साथ-साथ
हम आलोक जी
के जन्मदिन की
'अमित' दावत बिना ' किरन'
के उड़ाने लगे

अमित कुमार सिंह

4 comments:

sunil said...

bahut achhe,,

dard shayari

Amit Dhuria said...

Beautiful Post.. I loved it!

Rajnish Roy said...

Oustanding post. As a blogger, I used to believe that it is really difficult to be authentic but, your ingenuity in creating this article blew my mind. Thank you so much. Royal Attitude Status

Anonymous said...

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