Saturday, January 14, 2012

ओम पैसाय नमः

ओम पैसाय नमः
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चहुँ ओर गूँज रही है
एक ही आवाज,
जीवन का बन गया है
ये एक अभिन्न यन्त्र
"ओम पैसाय नमः"
जपते रहने का है ये मंत्र


हो रहा है हर तरफ,
इसका ही जाप
कह-कह कर
"ओम पैसाय नमः"
धुल रहे हैं लोग
अपने पाप


मन्त्र है ये पुराना,
पर कलयुग में
अपने महत्व को
इसने है पहचाना


क्या रंग है क्या है रूप
खिली है देखो चारो ओर ,
"ओम पैसाय नमः"की
सुन्दर धूप


मुर्दे में भी जान फूंक दे,
आलसी में भर दे तरंग
"ओम पैसाय नमः"का
क्या सुंदर है ये रंग


महिमा इसकी अपरम्पार है
साधु-सन्यासियों पर भी
फेंका इसने अपना जाल है


बिन मेवा न होगी अब
कोई "अमित" सेवा,
दोस्तों "ओम पैसाय नमः"
का ये आया काल है


जिसने खोजा ये मंत्र
था वो भी बड़ा कोई संत ,
रमा कर "ओम पैसाय नमः"की धूनी,
दुनिया उसने खूब घूमी


लिख-लिख कर
"ओम पैसाय नमः" की महिमा
मै भी इसके भंवर में डूब गया हूँ,
और अपने मन की शान्ती को
यारों! यहाँ - वहाँ फिर से ढूढ़ रहा हूँ

अमित कुमार सिंह
एम्स्टरडैम, नीदरलैंड

Sunday, December 25, 2011

"नया वर्ष - एक नयी किरण"


लेकर नयी खुशियाँ और नयी उमंग
नए वर्ष के सूरज ने ली अंगड़ाई,
और उम्मीदों की नयी 'किरन'
चहुँ ओर फैलाई ..

मन में भरा है सबने जोश
नहीं खोएंगे इस वर्ष होश,
अपने लक्ष्य करेंगे पूरा
नहीं कोई कार्य छोड़ेंगे अधूरा ..

स्वार्थ को भगा कर
समन्वय को बढ़ायेंगे,
हिंसा को मिटा कर
अहिंसा को अपनायेंगे ..

देशभक्ति की ज्वाला में जलाकर
नौजवानों को कुंदन बनायेंगे,
इस वर्ष देश के नौनिहालों को
सर्वधर्म समन्वय का पाठ पढ़ायेंगे ..

निर्धनता-असफलता
ये है मन की माया,
परिश्रम और लगन से
सफलता को हर किसी ने है पाया ..

इन मंत्रो का करते हुए मनन
आओ दोस्तों हम सब मिलकर,
करें इस नए वर्ष का
'अमित' अभिनन्दन .

अमित कुमार सिंह
एम्स्टरडैम, नीदरलैंड

Friday, October 29, 2010

एक कुंवारे का जन्मदिन

एक कुंवारे का जन्मदिन
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दिन था २७ मार्च

आप सोच रहें
होंगे क्या है
इसमे ख़ास?

आज उनका
जन्मदिन है
लेकिन वो
चिंता में लीन हैं
परेशान होकर
टहल रहें हैं

दोस्तों पर

बरस रहें हैं
नहीं मनायेंगे
इस बार अपने
जन्मदिन का जश्न,
इस घोषणा के साथ
कर दिया उन्होंने
हमसे विचित्र एक प्रश्न

कुआंरा तीस का
क्या है ये मौका
ख़ुशी के गीत का ?

हमने कहा

हे मित्र आलोक !
स्त्री तो मुसीबतों
का पिटारा है,
खुदा का शुक्र है
तू अभी तक कुवांरा है

ये सुनकर वो

फट पड़े,
गालियों का प्रसाद
खुले दिल से
बांटने लगे,
और कुवांरों की
महफ़िल में आने
के लिए,
खुद को ही
कोसने लगे

बचपन से ही

कर रहा हूँ
प्रयास दिन और रात,
पर नारी है कि
आती नहीं मेरे हाथ

मित्रों! तुम यूँ

न करो मेरे
जख्मों पर वार
बार-बार,
मेरी पीड़ा का
है ये सार

ये सुनकर हम
उनके दर्द को
समझ गए और
लड़की पटाने के
नए डाउनलोडेड
नुस्खे उन्हें बताने लगे,

लडकियों की साइकोलोजी
उन्हें विस्तार से
समझाने लगें

अगले जन्मदिन तक

वो एक नहीं दो हों
की शुभकामनाओं
के साथ-साथ
हम आलोक जी
के जन्मदिन की
'अमित' दावत बिना ' किरन'
के उड़ाने लगे

अमित कुमार सिंह

Thursday, October 28, 2010

और सामूहिक

और सामूहिक
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ये शब्द सुनते ही

मन में कौंध उठती है,

किसी अबला की चीख,

किसी की करुण पुकार,

किसी की उजड़ती लाज,

किसी की हृदयविहारक रुदन,

किसी निरीह नारी की गिड़गिड़ाहट ,

दानवी चेहरों वाले

शैतानों की खिलखिलाहट,

मानवों का अमानवीय कर्म


पर क्या स्त्री की

लज्जाहरण का यह

दुष्कर्म इतना,

सुलभ और आम हो गया है

हमारे समाज में कि,

हमारा चिंत "सामुहिक"

शब्द सुनते ही

इसकी कल्पना

कर लेता है ?


अगर यह सच है,

तो सचमुच ही

हमारा समाज

पतन कि ओर

अग्रसर है,

और हम चरित्रहीनता

की ओर

सुनकर जब "सामुहिक "

शब्द,मन में कौंधे

श्रमदान, सेवा, प्रतिज्ञा,

और परोपकार

का कर्म,

तभी होगा हमारे

देश का कल्याण और

सार्थक होगा आदर्श

"अमित" समाज का मर्म


अमित कुमार सिंह

Monday, November 02, 2009

फादर कामिल बुल्के

फादर कामिल बुल्के
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सादगी और ओज था
चेहरे पर उनके अद्भुत तेज था
जन्म से थे वो एक परदेशी
पर हिन्दी और हिन्दोस्तानियत में
थे वो बिल्कुल देशी
सन्त और समाजसेवी
फादर कामिल बुल्के थे
एक सच्चे हिन्दी प्रेमी और सेवी !

सरहदें रोक न सकीं जिनको
भारत का प्यार
खींच लाया था उनको
एक ईशा का भक्त
बन गया था रामकथा का
अन्वेषक और
'तुलसी' का पुजारी !

पढ रामचरित मानस
हुये वो भाव विह्वल
लगा दिया उन्होने
हिन्दी और राम में
अपने जीवन का
एक - एक पल !

हिन्दी की मृदुलता ने
मोह लिया जिस
फ्लेमिश का दिल
दिया उसने हिन्दी को
तोहफा एक अनमोल
कहते हैं जिसे
अंग्रेजी - हिन्दी शब्दकोश !

ममता और दयालुता
से भरा विशाल हिर्दय था
सबकी मदद के लिये
हमेशा तत्पर रहने वाला
उनका 'अमित' व्यक्तित्व था !

हिन्दी भाषियों को
हिन्दी का सम्मान
करना सीखा गये,
सन्त महापुरुष 'कामिल बुल्के' जी
हम हिन्दुस्तानीयों पर अपनी
एक अमिट पहचान छोड गये !!

अमित कुमार सिंह
कनाडा

Sunday, May 17, 2009

सोचना मना है

सोचना मना है
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बडे बडे बुध्दिजिवियों ने
बहुत सोच समझ कर
कहा है कि
सोचना मना है !



इस लालच और
दुःखों भरी दुनिया में
खुश रहना हो तो
सोचना मना है !



एक 'पवन' का झोका
आया और बोला तू
बस लिखता चला जा
ऐ कवि, कुछ ना सोच
क्योंकि सोचना मना है !



दिमाग से चलती
इस दुनिया में
अगर दिल को
जगह दिलाना है,
तो सोचना मना है !



गमों के सायों को
खुशियों का आवरण
पहनाना है तो
सोचना मना है !



उठो ! तुम भी लिखो
जो मन करे वो करो
क्योंकि खुश रहने के लिये
सोचना मना है !



आप भी पढो इस कविता को
और जो आये दिल में
वो ही बोलना,
बिल्कुल ना सोचना
क्योंकि सोचना मना है !



कविता की हो तारीफ
या हो फिर निंदा,
इसका नही है कोई गम
क्योंकि दोस्तों !
सोचना मना है !



मैं लेखनी के इशारों पे
चलता गया
और 'अमित' ये
'किरन' रचना
रचता चला गया
ये ना पूछना यारों क्यों
क्योंकि सोचना मना है !!


अमित कुमार सिंह

Sunday, April 05, 2009

बाक्सिंग डे



बाक्सिंग डे

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घर में चहल पहल थी

बडे जोर शोर से

तैयारी चल रही थी

सभी कार्यक्रम स्थगित थे

सारी खरीदारी रुकी हुयी थी

आखिरकार दो दिन बाद

बाक्सिंग डे की

सेल जो थी !

सच ही है

इंसान चाहे हो हिन्दुस्तान का

या फिर हो अमरीका, कनाडा

या इंग्लिस्तान का,

मुफ्त का आकर्षण उसके

दिल को गुदगुदा जाता है,

एक के साथ एक मुफ्त का

विज्ञापन उसे लुभा ही जाता है !


देख ये हलचल टोरंटो शहर में

खिल उठा मेरा मन समंदर,

क्या ही बात है

कनाडा और हिन्दुस्तान में

रहा न अब कोई अन्तर !


साल भर से इस दिन का

इन्तजार करते लोगों के

चेहरे चमक रहे थे,

और मनपसंद वस्तु

मनचाहे दाम पर

खरीदने के लिये वो

व्याकुल हो रहे थे !




सुना था दुकानें

प्रातः पाँच बजे ही

खुल जाती हैं,

कतारें तो पूर्व संध्या पर

ही लग जातीं हैं,

कहीं मनपसंद वस्तु

हाथ से न निकल जाये,

इसलिये जनता दुकानों के

सामने ही सो जाती है !


बडे इन्तजार के बाद

आखिरकार वो दिन आ ही गया,

उत्सुकता के बादलों ने

मेरी आँखो में घेरा डाल दिया !


उस दिन कडाके की ठण्ड थी

टोपी मफलर से मैं भी

लिपटा हुआ था,

चार बजे की ब्रह्मबेला में

मै भी दुकान पर पहुँचा था,

दो सौ लोग मेरे आगे थे

और मैं समय से पीछे था !


उम्मीद की 'किरन'

होने लगी कमजोर,

तभी हुआ दुकान

खुलने का शोर,

लगा कि इतने लोगों के

बाद मैं क्या पाउँगा,

शायद इस बार कैमरे की

जगहउसका कवर ही पा पाउँगा,

और कैमरा शायद

अगले बरस ही ले पाउँगा !


तभी विचारों कि

इस आँधी पर लगा विराम,

देख लोगों की अटूट

'मुफ्त' निष्ठा को

'छूट' के प्रति इस

दैविय समर्पण को,

'अमित' दिल मेरा

भर आया,

और कनेडियनों के इस

पवित्र निशच्छल प्रेम को देख,

मैं भाव विभोर हो

कतार से बाहर आ गया !!



अमित कुमार सिंह