Friday, February 16, 2007

मित्रता

मित्रता
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एक रिश्ता है ऐसा
बिल्कुल अनोखा हो जैसा,
स्वार्थ से अछूता,
समन्दर से गहरा हैं वो |

जाति पाँति के बन्धनों से परे
धर्मों के आडम्बरों से दूर है जो
कहते हैं जिसे हम मित्रता,
क्या विश्वास है और कितनी
भरी है इसमें मधुरता |

सुख मे भले ना
वो दिखलाये,
पर दुःख में हमेशा,
दोस्त काम आये |

औपचारिकता से
परे है जो,
दिल के कितने
करीब है वो |

कह ना सके जो
बात किसी से,
दोस्तों से कह जाते हैं
कितनी सहजता से उसे|

भरोसे का अटूट
आधार है जो,
मुसीबतों में खडा
चट्टान है वो |

जिसकी देतें हैं
लोग मिसालें,
दोस्ती और दोस्त ही हैं
'अमित' मेरे यार,
जो हमारे जीवन रुपी नाटक में
अदा करते हैं,
एक महत्वपूर्ण किरदार
वो भी दोस्तों!
एक नहीं अनेकों बार ||

अमित कुमार सिंह

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