Wednesday, April 04, 2007

इंतज़ार

इंतज़ार
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कल उनसे मिलन होगा,
सोच कर मन पुलकित हो रहा था,
मिलन की तैयारी में रातों की नींद
खो रहा था।

कौन सी ड्रेस पहनूं,
काली पैंट पर चेक शर्ट या,
फिर क्रीम कलर की पैंट पर,
काली शर्ट,
ये पूछ-पूछ कर दोस्तों को भी
दर्द दे रहा था।

पर यारों मिलन की चाहत में,
मैं इन सब बातों पर,
ध्यान नहीं दे रहा था।

कहीं सुबह लेट न हो जाऊँ,
देर तक कहीं निद्रा में न डूब जाऊँ,
यही सब सोच-सोच कर,
मोबाइल में अलार्म दे रहा था।

इलेक्ट्रानिक्स की चीज़ का भरोसा नहीं,
कब धोखा दे जाए,
इसलिए एक नहीं दो-तीन घड़ियों में,
अलार्म सेट कर रहा था।

आख़िरकार सभी तैयारी हुई पुरी,
मेरे और बिस्तर के बीच,
अब नहीं रही दूरी
जल्द ही मैं खो गया सपनों में

मैं सजधज के तैयार हूं,
उनसे मिलन के लिए,
बेकरार हूं,
वो लाल-नीले रंगों से सजी हुई,
मदमस्त, लहराती हुई आ रही हैं
जैसे ही वो करीब आईं,
मैं लपक कर उनसे समा गया।

मेरा अस्तित्व अब उनके ही
अंदर विलीन हो गया
वो ही अब मेरी पहचान थीं,
और मैं प्यार के पथ पर,
चलता हुआ एक,
पथिक था।

उनमें समा कर मैं,
इधर-उधर गोते खाने लगा,
कभी जागता तो,
कभी सोने लगा।

प्यार उन्होंने इतना दिया,
कि भूख-प्यास का भी ध्यान
अब नहीं रहा
इंतज़ार था तो बस इतना,
कि मंज़िल तक कब पहुँचूँगा
परमानंद की उस ऊंचाई,
को कब पाऊँगा।

तभी अचानक ज़ोर-ज़ोर से,
आवाज़ें आने लगीं,
चौंक कर मैं उठ बैठा,
सपनों का महल
पल भर में ही टूट गया।

कहीं भूकंप तो नहीं आया,
उलटे-सीधे ख्याल मैं
मन में ले आया।

पर फिर मैंने पाया,
मेरी घड़ियों ने
नहीं दिया था धोखा
अपना फ़र्ज़ निभाने का
पाया था उन्होंने ये
सुनहरा मौका।

सपनों से बाहर आने का
समय आ चुका है,
फिर मैंने ये सोचा।

तुरत-फुरत करके तैयारी,
निकाली दोस्तों ने
मेरी सवारी।

बैठा कर ऑटो में,
दी उन्होंने बिदाई
ऑटो वाले ने भी तब,
नब्बे स्र्पया लूँगा की,
अपनी मांग सुनाई।

नब्बे क्या मैं सौ दूँगा,
अगर वक्त पर मैं पहुँचूँगा,
मैंने भी अपनी ये,
इच्छा उसे जताई।

पता नहीं ये किसकी
चाहत का था नतीजा
ऑटो वाले के अधिक पैसे पाने की,
या फिर मेरी उनकी दीदार के,
मैं वक्त से
पहले पहुंचा था।

दिल में उमंगें थीं,
मन में था
बड़ा सुकून,
जल्द ही मिलन होगा,
इसका छाया हुआ था जुनून।

मगर दोस्तों प्यार की राह
है नहीं इतनी आसान
अब शुरू होता है इंतज़ार
का लंबा सफ़र।

याद आने लगे
प्रेमिकाओं के नखरे
इनकी इंतजार करवाने
वाली फ़ितरतें।

खुद को कोसता
क्यों आया इतना वक्त पर,
दीवाना क्यों बन गया,
मिलन की इस चाहत में।

कहीं फँस गई होगी,
राह में कोई मुसीबत आ गई होगी
ये सोच-सोच कर,
अपने दुखी मन को
समझाया।

मेरी वाली अच्छी है
वो धोखा नहीं देगी,
और वक्त पर आकर,
मुझे अपने आगोश में लेगी।

मन में था बस इतना सा ख्वाब,
बेचैन दिल से निकल रही थी आह!
ये इंतज़ार उफ़ ये इंतजार!
तड़प-तड़प के
आ रही थी,
चारों ओर से ये आवाज़।


लंबे इंतज़ार के बाद,
वो देखो!
सीटी बजाते हुए
आ रही थी।

उदास चेहरों पर
खुशी की लहर दौड़ती
जी हां दोस्तों ये!
ये!
कोई मेरी महबूबा नहीं
लौह पथ गामिनी थी,
भारतीय रेल की
खोई हुई एक निशानी थी,
कभी समय पर न आने की
उनकी कहानी थी।

आप ये जो सुन रहे थे,
या यों कहूं,
सुन-सुन कर बोर हो रहे थे,
वो इंतज़ार के दर्द से,
बेहाल एक यात्री की
दर्द भरी कहानी,
उसकी ही जुबानी थी।


अमित कुमार सिंह

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