Monday, April 23, 2007

मै आवारा ही रह गया

मै आवारा ही रह गया
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बचपन में पढने
से ज्यादा,
खेलता ही रह गया,
और यूँ मै
आवारा ही रह गया


यौवनावस्था में

सामने रहने वाले,
चाँद के टुकडे को
देखता ही रह गया,
और यूँ मै
आवारा ही रह गया


बडे होने पर जब

कुछ कर गुजरने का
समय आया,
दोस्तों के साथ गप्पें
मारता ही रह गया,
और यूँ मै
आवारा ही रह गया


जब कोई रास्ता

नहीं बचा तो,
कलम-कागज लेकर
अपने अनुभव को
ही निचोडनें लगा,

और बातों ही बातों में
कवितायें करने लगा,
और यूँ मै
आवारा ही रह गया


अमित कुमार सिंह

2 comments:

Anonymous said...

ये आवारगी भी क्या चीज है!

Vikash said...

ये दिल ये पागल दिल मेरा, गया आवारगी में. :)