Sunday, May 06, 2007

धूम्रपान - एक कठिन काम

धूम्रपान - एक कठिन काम
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करते हैं जो धूम्रपान
की निन्दा
उनसे हूँ मै
बहुत खफा,

जान लें वो
इस कार्य कि
महत्ता को,
या फिर हो
जायें यहाँ से दफा


महान ये काम है
आसान नही ये राह है
वर्षो की साधना का
निकला ये परिणाम है


धुँयें के छल्ले बनाना
एक साँस में ही
पूरी सिगरेट पीना,
जहरीले धुँयें को
अपनें अन्दर समा कर
चेहरे पर खुशी की
झलक दिखलाना,
इसका नहीं कोई मेल है
ना ही ये हँसी और खेल है


खुद के फेफडों को
दाँव पर लगाकर
सिगरेट के कश
लगाते है
यूँ ही नहीं दुनियाँ में
साहसी हम कहलाते है


सिगरेट के धुँयें कितनों को
रोजगार दिलाते हैं,
इसकी एक कश से
कठिन से कठिन समस्या का
हल यूँ ही निकल आते हैं


बढती आबादी पर
लगाने का लगाम,
क्या नही कर रहे
हम नेक ये काम


खुद को धुँये में
जला कर
बनते हैं दुसरों के लिये
बुरे एक उदाहरण,
नहीं काम है ये साधारण


क्यूँ नाहक ही करते हो
हमे इस तरह बदनाम,
दे-दे कर गालियाँ
सुबह और शाम


अभी समझ आया या
फिर कुछ और सुनाउँ,
रूको! जरा पहले
एक सिगरेट तो जलाउँ


अमित कुमार सिंह

4 comments:

Udan Tashtari said...

हमको गलत काम सिखालाते हो
उस पर आप अकड़ दिखलाते हो //हो जायें यहाँ से दफा//
माना कि कविता है बेहतरीन बनीं
वैधानिक चेतावनी नहीं बतलाते हो. :)


--- बढ़िया मजेदार कविता कर गये आप!! बधाई!!

ghughutibasuti said...

वाह! सच में एक शिव थे जो गरल पी नीलकंठ बने दूसरे आप हैं ।
बहुत अच्छी कविता ।
घुघूती बासूती

अभय तिवारी said...

यहाँ हम भूलने की कोशिश में है.. और तुम हो कि याद ही नहीं दिला रहे.. गाना भी गा रहे हो.. भाई थोड़ा रहम करो..

Anonymous said...

Sahi likhe hain...
Chaliye milkar bigaadte hain sabko

hamaare vichaar yahaan parhiye :-)
http://www.mpsharma.com/?p=86