नारी समानता - एक परिवर्तन
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नारी समानता के
इस युग में
भोजन पका रहा हूँ,
दफ्तर से लौटी
बीबी के लिये
चाय बना रहा हूँ
नारी जागरण कीं
क्रन्ति का शिकार हूँ,
कपडे धुलता-धुलता
हुआ अब मैं बेहाल हूँ
याद कर बीते दिनो को
सिसकता हूँ,
नारीयों के इस
नये कदम
से सिहर जाता हूँ
कहीं कोई गलती
ना हो जाये
इससे बचता हूँ,
नारी उत्पीडन का
केस कर दूँगी,
इस धमकी से
बहुत डरता हूँ
चारो ओर नारी-उत्थान
की चर्चा सुनता हूँ,
और अखबारों में अब
'घरेलू पति चाहिये'
का इश्तहार देखता हूँ
वो भी क्या दिन थे
आदेश जब हम
दिया करते थे,
चाय-पकौडों में
देरी होने पर
कितनी जोर से
गरजा करते थे
नारी शक्ति के
इस युग में
अब पुरुष-उत्पीडन का
केस लडता हूँ,
कटघरे में खडे
पुरुषों की सहमी हुयी
हालत को
बेबश देखता हूँ
क्या सही है
क्या गलत,
अभी कुछ नही
समझ आता है,
अब तो नारीयों से
यही है विनती-
भूल कर पुरानी बातों को
यदि वो बाँट लें
अब काम आधा-आधा,
तो होगा जीवन में
दोनों के सकून
ये है हमारा वादा
अमित कुमार सिंह
2 comments:
आपके इरादे तो अब नेक नजर आ रहे हैं । किन्तु फिर भी अभी भी आपका मन सही गलत नहीं समझ पाया है । जब समझ जाएगा तब नारियाँ आपकी विनती पर विचार करेंगी ।
घुघूती बासूती
बहुत सही. दुख बांटने से कम हो जाते हैं, अच्छा किया जो बांट लिया चिट्ठाकारों के साथ.
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