दीप प्रकाश
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दीवाली का दिन था
और मै था
अपनॊ सॆ दूर
लगता था
शायद खुदा कॊ
यही है मन्जूर
जला दीपक कॊ
याद कर रहा था
पुरानी यादॊ कॊ,
उन झिलमिलाति
रॊशनी और पठाकॊ
कॆ शॊर कॊ,
दॊस्तॊ कॆ ठहाकॊ
और बडॊ कॆ
स्नॆह् कॊ
तभी अचानक
अधॆरा छा गया,
दीपक बुझ गया था
और मै फिर सॆ
तन्हा हॊ गया था
पल भर मॆ ही
प्रकाश सॆ मै
अन्धकार मॆ आ गया,
और जीवन की
इस छडभन्गुरता का
ठन्डा सा अहसास
पा गया
दीपक बुझ गया
पर मुझॆ राह दिखा गया,
निस्वार्थ भाव सॆ
कर्म करतॆ हुयॆ,
रॊशन करॊ इस सन्सार कॊ,
मिटा कर भॆद्
अपनॆ परायॆ,
दॆश परदॆश का,
निश दिन
परॊपकार तुम करॊ
अमित कुमार सिह्
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