माटी की गंध
------------
कभी अच्छी
तॊ कभी बुरी
लगती है
माटी की गन्ध |
लगती है
ऎक सुन्दर सी
सुगन्ध,
अगर हॊ इनमॆ
खलियानॊ,बगानॊ
कॆ रंग |
बन जाती है
यही ऎक
बुरी गन्ध,
रहती है जब
यॆ नालॊं
कॆ संग |
गरीबॊ कॆ झॊपडॊ मॆ
हॊती है बॆमॊल,
रईसॊ कॆ आंगन मॆ
हॊ जाती है यॆ अनमॊल |
बंजर है तॊ
विराना ही है
इसका साथी,
उपजाउ हॊकर
बन जायॆ यॆ
किसानॊ कि थाती |
माटी का यॆ रंग
हमॆ यॆ सिखलायॆ,
काम अगर
दूसरॊ कॆ आयॆ,
अच्छी संगत
अगर अपनायॆ,
तॊ फैलॆगी
तुम्हारी गंध
बनकॆ ऎक सुगंध,
और मिटनॆ
सॆ पहलॆ,
माटी मॆ मिलने
सॆ पहलॆ,
जान जायॆगा
तॆरा यॆ तन
जीवन का
सही रंग ||
अमित कुमार सिह
No comments:
Post a Comment