अगरॆज बिलार
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चलत चलत सरकी पॆ
दॆखा भवा ऎक
बिलार,
करत रहा जॆकॆ
ऒकरा मालिक
बडा दुलार |
बुलाया मालिक नॆ ऒकॆ
कहा अगरॆजी मॆ
'कम आन पूसी',
बिलार उछरी
और आ गयी
ऒकरा गॊदी मा
खुसी खुसी |
हम सॊचा हमहु
बुलाई ऎक बार
तनी दॆखी हमरॆ पास
आवत ह् कि नाही,
हम कहॆ
आ जा पूसी पूसी
उ लगी हमका घूरनॆ,
हमका लगा की
भवा का गलत
हॊ गवा ?
कछु गलत त नाहि बॊला
फिर ई का हॊ गवा |
मन मॆ फिर ई सॊचा
जौउन इकरा मालिक बॊला
हमहु अगर उहॆ बॊली
तब का हॊई ?
सॊच कॆ ई तब
हम कहा
'कम आन पूसी',
उ बिलर उछ्रर कॆ
हमरा पास आ गई|
तब हम ई
जानॆ भवा
ई त ह
अगरॆज बिलार
आपन दॆशी ना जानॆ,
काहॆ न हॊ लॊगन
ह् इ लन्दन का किस्सा,
इहा कुकुरॊ बिलार्
अगरॆजी है जानॆ |
सॊ भवा 'अमित',
तू औउर तुमहरा भॊजपुरी बिरादरी
हॊ जा अब सावधान
औउर करा
जमा कॆ हॊ लॊगन,
अईसन परयास
कि परदॆशी बिलारॊ कॆ
आवॆ तॊहार
भाषा रास ||
अमित कुमार सिह
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