Tuesday, November 14, 2006


दीवाना रवि
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गॊरी गॊरी
लडकियॊ का
दिवाना लन्दन की
सडकॊ पर‌
मन्डराता , ऎक दीवाना
नाम जिसका रवि,
मित्र था उसका यॆ कवि

अग्रॆजॊ सॆ
प्रभावित
उनकी
रहन‍ सहन का
कायल था वॊ,
कॊई गॊरी हॊ
उसकि भी दिवानी
दिन रात सॊचता
रहता था यही जॊ

रवि बाबू बनतॆ तॊ
थॆ बडॆ समझदार,
पर दिल कॆ थॆवॊ उदार ,
झटकॆ तॊ खायॆ
अनॆकॊ बार,
पर अपनॆ भॊलॆपन सॆ
हमॆशा करतॆ थॆ
वॊ ईन्कार

बीयर कॊ दारु
कह्कर पीतॆ थॆ
और् नशा न हॊनॆ
पॆ भी झूमतॆ थॆ

हिन्दी फिल्मॊ की
हसी उडातॆ,
अग्रॆजी फिल्मॊ की
करतॆ वॊ खूब,
वकालत थॆ,
विरॊध करनॆ पर‌
दुश्मन की तरह‌
नजर वॊ आतॆ थॆ

गॊरीयॊ सॆ आखॆ चार‌
करनॆ की हसरतॆ लियॆ हुयॆ
आज भी लन्दन की
सडकॊ पर रवि बाबु
मडरा रहॆ है
और् पुछनॆ पर‌
'अमित'यॆ शरमा रहॆ है

अमित कुमार सिह‌

2 comments:

Pramod Kumar Upadhyay said...

aur kab tak Sahrmaoge... ??
abhi bhi HCU ka bahcaa TCS ka bachha hai..aur London mein bhi..Baccha ban kar rah raha hai..
Bacche ko...London ke Bacchi chaiye...

alok said...

landan me bhi tabahi macha rahe ho , kahi ye kavita tumhare bare me to nahi hai