सॊम गाथा
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बचपन मॆ दॆखा
था ऎक सपना,
शादी कब हॊगा
इनका अपना |
पढ पढ कॆ
समय किया बरबाद,
अब पछतातॆ है,
कन्याऒ कॆ साथ
जीवन क्यॊ नही
किया आबाद |
रॊज बनातॆ है
यॆ नयॆ नयॆ प्लान,
पर कॊइ भी नही आता है
इनकॆ काम |
लडकिया नही
दॆती है लिफ्ट,
दॆ दॆ कर थक
गयॆ है यॆ गिफ्ट |
भॊलॆ भालॆ और
सुन्दर मुख, बदन
है यॆ वीरवान,
पर कन्यायॆ उनकॆ
इन गुणॊ सॆ
है बिल्कुल अन्जान |
कभी थी कॊई
ऎक 'वनिता',
अब इस अन्धॆरॆ जीवन कॊ
ऎक 'ज्यॊति' की तलाश है
नही करॆगी जॊ
उन्हॆ निराश,
ऐसा इस 'सॊम'कॊ
'अमित' विश्वास है ||
अमित कुमार सिह
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