Tuesday, April 03, 2007

परिवर्तन

परिवर्तन
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नया दौर आया,
लेकर नया जमाना
परिवर्तन का मंत्र जपता
हर कोई बन गया है
इसका दीवाना।

परिवर्तन की इस
आंधी में,
बदल गयी है
कविताओं की
भी बानी,
दीर्घ से लघु
में सिमटने की
महत्ता अब
इसने है पहचानी।

समय का है
लोगों के पास अभाव
तीन-चार पंक्तियों में
दे सको यदि पूरी कविता
का भाव,
तो मेरे पास आओ
अन्यथा इसे लेकर
यहाँ से चले जाओ।

और जाते-जाते
मेरा ये सबक अपनाओ-
लिखना नहीं रहा
अब तुम्हारे बस का रोग
पेट पालने के लिए
करो कोई और उद्योग।

सुन के ये
पावन वचन
सिहर गया
मेरा तन बदन
और अपनी जीविका
चलाने के लिए
करने लगा मैं
कविताओं की जड़ों
पर वार।

ओढ़ लबादा परिवर्तनशीलता का
करने लगा मैं भी,
कविताओं की बोनसाई तैयार।

अमित कुमार सिंह

2 comments:

Reetesh Gupta said...

बहुत सत्य कहा है आपने ।
लेकिन अपनी कविता को ना बदलिये
अच्छा लिखते है आप

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया..लिखते रहें.